(GRI has requested to author for english translation)
बिहार सूचना का अधिकार मंच द्वारा भारतीय नृत्य कला मंदिर, पटना में "मेरी आवाज सुनो" कार्यक्रम का आयोजन हुआ, जिसमें मुख्य रुप से मैग्सेसे अवार्ड विजेता श्री अरविंद केजरीवाल, सुप्रीम कोर्ट में वरीय अधिवक्ता श्री प्रशान्त भूषण, बिहार मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष माननीय न्यायमूर्ति श्री एस॰ एन॰ झा तथा सदस्य माननीय न्यायमूर्ति श्री राजेन्द्र प्रसाद एवं अन्य वक्ताओं ने अपनी बातें रखी । मुख्य मुद्दा था - लोक सूचना पदाधिकारी द्वारा सूचना आवेदकों को झूठे मुकदमे में फँसाने एवं अन्य तरह से प्रताड़ित करने के संबंध में । चूंकि मैं खुद इसका शिकार हूँ, इसलिए खासकर अपने गाँव से इस मीटींग में शामिल होने चला आया । इसमें कुछ बातें ऐसी लगी, जिन्हें मैं यहाँ दुहराना चाहूँगा -
सबसे पहले तो मैं एकमात्र उपस्थित लोक सूचना पदाधिकारी जो पुलिस विभाग से थे का जिक्र करुँगा । उन्होने कहा कि पुलिस विभाग की नौकरी थैंकलेस जौब है और प्राथमिकी दर्ज करना हमारी मजबूरी है, चाहे वह झूठी ही क्यों न हो । अनुसंधान में घटना को असत्य पाए जाने पर आरोप पत्र दाखिल नहीं किया जाएगा तथा वह मुकदमा स्वतः बंद हो जाती है । मुझे कानून की जानकारी नहीं है, पर अगर ऐसा है तब तो यह काला कानून है और बिना हत्या हुए कोई हत्या का मुकदमा किसी पर दर्ज करा सकता है और मुकदमा दर्ज होने तथा आरोप पत्र दाखिल होने या न होने के बीच के समयांतराल में अभियुक्त बेवजह मानसिक, शारीरिक तथा आर्थिक परेशानी को झेलता रहे । और फिर अपने आप को सही साबित करने के लिए वह अनुसंधान पदाधिकारी का लल्लो-चप्पो करता रहे ।
न्यायमूर्ति एस॰ एन॰ झा साहब ने बड़ी महत्वपूर्ण बात कही कि न्यायालय में लोग न्याय के लिए आते हैं, लेकिन बड़ी अजीब बात है कि बहुत रेयर केस में ही फरियादी अपनी बात खुद कहता है, फिर केस डायरी में कितनी सच्चाई रहती है यह भी संदिग्ध है अर्थात न्यायालय के निर्णय दूसरों की कही बातों पर दिए जाते हैं । उन्होने खुले मंच से स्वीकार किया कि न्याय बहुत कम ही लोगों को मिल पाता है । बहुत लोग तो ऐसे भी मिले हैं जिनके खिलाफ आरोप पत्र भी दाखिल नहीं हुआ और कानूनी अनभिज़तावश तीन-तीन साल से जेल में बंद थे । उनका कहना था कि कम से कम ब्यूरोक्रेट्स अथवा उनके अनुकर्मी जनता से सीधे जुड़े रहते हैं और वे उन्हें प्रथम दरवाजे पर ही उचित एवं सबसे प्रभावी न्याय देने में सक्षम हैं । उन्होने सरकारी सेवकों के खिलाफ उचित आनुशासनिक कार्रवाई न किया जाना सरकारी बाबुओं में व्याप्त लालफिताशाही का मुख्य कारण माना । यह बड़ी महत्वपूर्ण बात कही कि लोग चाहते तो हैं कि भ्रष्टाचार न रहे पर इसके लिए पब्लिक ओपिनियन आज तक नहीं बन पाया है । सबसे पहले तो अधिसंख्य लोग या तो भ्रष्टाचार में लिप्त हैं अथवा भ्रष्टाचारियों के बचाव में उठ खड़े होते हैं, कोई जात के नाम, कोई संप्रदाय के नाम पर, कोई क्षेत्र के नाम पर इत्यादि । अर्थात् भ्रष्टाचार मुद्दा बन ही नहीं पाता है, लोगबाग हर स्थिति में स्वयं लाभान्वित रहना चाहते हैं । मैं तो यही कहूँगा कि आत्म विश्लेषण की जरुरत है ।
अरविन्द केजरीवाल जी ने बिहार में मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर अशोक चौधरी की पदस्थापना को गलत बताया । उनका कहना था कि मान लें प्रशासक के रुप में चौधरी साहब ने अगर कुछ गलतियाँ कि होंगी और उसी से संबंधित सूचना कोई माँग दे तो क्या ये निष्पक्ष सूचना देंगे, नहीं देंगे । उन्होने तो यहाँ तक कहा कि बिहार सूचना का अधिकार मंच की संयोजिका श्रीमती परवीण अमानुल्लाह को ही मुख्य सूचना आयुक्त बना दिया जाए । केजरिवाल जी ने कहा कि सूचना आवेदकों पर जो पीआईओ मुकदमा दर्ज करता है वास्तविक नक्सली वही है । प्रायः सूचना का आवेदन वैसे लोग ही देते हैं, जिनका काम विभागों में सामान्य ढंग से नहीं होता है । एक तो उसका काम नहीं हुआ और जब वह अपने संवैधानिक अधिकार का प्रयोग करता है तो उसपर मुकदमा कर दिया जाता है, इससे समाज में हताशा बढ़ती है और उकताकर आदमी गलत कदम उठाता है ।
प्रशान्त भूषण ने व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन की बात कही, तथा मानवाधिकार आयोग को दण्ड देने का अधिकार दिये जाने की माँग की ।
मुझे मंच पर विचार व्यक्त करने का मौका तो नहीं मिला पर यहाँ तो कर ही सकता हूँ -(१) सबसे पहले हर व्यक्ति को खुद के अंदर झाँकने की जरुरत है, और कम से कम गलतियाँ हों ऐसा ध्यान रहे । (२) गलत करनेवाला कोई भी हो, उसका विरोध होना चाहिए । (३) विरोध का तरीका संविधानिक विधियों के अधीन होना जरुरी है । (४) सबसे पहले आम जन को ताकतवर बनाना जरुरी है, जिसका एकमात्र उपाय है - सबको शिक्षित करना । (५) तात्कालिक फायदे के लोभ में न आना ।
Report on RTI seminar, Patna, Bihar
ReplyDeleteBihar, India
(GRI has requested to author for english translation)
बिहार सूचना का अधिकार मंच द्वारा भारतीय नृत्य कला मंदिर, पटना में "मेरी आवाज सुनो" कार्यक्रम का आयोजन हुआ, जिसमें मुख्य रुप से मैग्सेसे अवार्ड विजेता श्री अरविंद केजरीवाल, सुप्रीम कोर्ट में वरीय अधिवक्ता श्री प्रशान्त भूषण, बिहार मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष माननीय न्यायमूर्ति श्री एस॰ एन॰ झा तथा सदस्य माननीय न्यायमूर्ति श्री राजेन्द्र प्रसाद एवं अन्य वक्ताओं ने अपनी बातें रखी । मुख्य मुद्दा था - लोक सूचना पदाधिकारी द्वारा सूचना आवेदकों को झूठे मुकदमे में फँसाने एवं अन्य तरह से प्रताड़ित करने के संबंध में । चूंकि मैं खुद इसका शिकार हूँ, इसलिए खासकर अपने गाँव से इस मीटींग में शामिल होने चला आया । इसमें कुछ बातें ऐसी लगी, जिन्हें मैं यहाँ दुहराना चाहूँगा -
सबसे पहले तो मैं एकमात्र उपस्थित लोक सूचना पदाधिकारी जो पुलिस विभाग से थे का जिक्र करुँगा । उन्होने कहा कि पुलिस विभाग की नौकरी थैंकलेस जौब है और प्राथमिकी दर्ज करना हमारी मजबूरी है, चाहे वह झूठी ही क्यों न हो । अनुसंधान में घटना को असत्य पाए जाने पर आरोप पत्र दाखिल नहीं किया जाएगा तथा वह मुकदमा स्वतः बंद हो जाती है । मुझे कानून की जानकारी नहीं है, पर अगर ऐसा है तब तो यह काला कानून है और बिना हत्या हुए कोई हत्या का मुकदमा किसी पर दर्ज करा सकता है और मुकदमा दर्ज होने तथा आरोप पत्र दाखिल होने या न होने के बीच के समयांतराल में अभियुक्त बेवजह मानसिक, शारीरिक तथा आर्थिक परेशानी को झेलता रहे । और फिर अपने आप को सही साबित करने के लिए वह अनुसंधान पदाधिकारी का लल्लो-चप्पो करता रहे ।
न्यायमूर्ति एस॰ एन॰ झा साहब ने बड़ी महत्वपूर्ण बात कही कि न्यायालय में लोग न्याय के लिए आते हैं, लेकिन बड़ी अजीब बात है कि बहुत रेयर केस में ही फरियादी अपनी बात खुद कहता है, फिर केस डायरी में कितनी सच्चाई रहती है यह भी संदिग्ध है अर्थात न्यायालय के निर्णय दूसरों की कही बातों पर दिए जाते हैं । उन्होने खुले मंच से स्वीकार किया कि न्याय बहुत कम ही लोगों को मिल पाता है । बहुत लोग तो ऐसे भी मिले हैं जिनके खिलाफ आरोप पत्र भी दाखिल नहीं हुआ और कानूनी अनभिज़तावश तीन-तीन साल से जेल में बंद थे । उनका कहना था कि कम से कम ब्यूरोक्रेट्स अथवा उनके अनुकर्मी जनता से सीधे जुड़े रहते हैं और वे उन्हें प्रथम दरवाजे पर ही उचित एवं सबसे प्रभावी न्याय देने में सक्षम हैं । उन्होने सरकारी सेवकों के खिलाफ उचित आनुशासनिक कार्रवाई न किया जाना सरकारी बाबुओं में व्याप्त लालफिताशाही का मुख्य कारण माना । यह बड़ी महत्वपूर्ण बात कही कि लोग चाहते तो हैं कि भ्रष्टाचार न रहे पर इसके लिए पब्लिक ओपिनियन आज तक नहीं बन पाया है । सबसे पहले तो अधिसंख्य लोग या तो भ्रष्टाचार में लिप्त हैं अथवा भ्रष्टाचारियों के बचाव में उठ खड़े होते हैं, कोई जात के नाम, कोई संप्रदाय के नाम पर, कोई क्षेत्र के नाम पर इत्यादि । अर्थात् भ्रष्टाचार मुद्दा बन ही नहीं पाता है, लोगबाग हर स्थिति में स्वयं लाभान्वित रहना चाहते हैं । मैं तो यही कहूँगा कि आत्म विश्लेषण की जरुरत है ।
अरविन्द केजरीवाल जी ने बिहार में मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर अशोक चौधरी की पदस्थापना को गलत बताया । उनका कहना था कि मान लें प्रशासक के रुप में चौधरी साहब ने अगर कुछ गलतियाँ कि होंगी और उसी से संबंधित सूचना कोई माँग दे तो क्या ये निष्पक्ष सूचना देंगे, नहीं देंगे । उन्होने तो यहाँ तक कहा कि बिहार सूचना का अधिकार मंच की संयोजिका श्रीमती परवीण अमानुल्लाह को ही मुख्य सूचना आयुक्त बना दिया जाए । केजरिवाल जी ने कहा कि सूचना आवेदकों पर जो पीआईओ मुकदमा दर्ज करता है वास्तविक नक्सली वही है । प्रायः सूचना का आवेदन वैसे लोग ही देते हैं, जिनका काम विभागों में सामान्य ढंग से नहीं होता है । एक तो उसका काम नहीं हुआ और जब वह अपने संवैधानिक अधिकार का प्रयोग करता है तो उसपर मुकदमा कर दिया जाता है, इससे समाज में हताशा बढ़ती है और उकताकर आदमी गलत कदम उठाता है ।
प्रशान्त भूषण ने व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन की बात कही, तथा मानवाधिकार आयोग को दण्ड देने का अधिकार दिये जाने की माँग की ।
मुझे मंच पर विचार व्यक्त करने का मौका तो नहीं मिला पर यहाँ तो कर ही सकता हूँ -(१) सबसे पहले हर व्यक्ति को खुद के अंदर झाँकने की जरुरत है, और कम से कम गलतियाँ हों ऐसा ध्यान रहे ।
(२) गलत करनेवाला कोई भी हो, उसका विरोध होना चाहिए ।
(३) विरोध का तरीका संविधानिक विधियों के अधीन होना जरुरी है ।
(४) सबसे पहले आम जन को ताकतवर बनाना जरुरी है, जिसका एकमात्र उपाय है - सबको शिक्षित करना ।
(५) तात्कालिक फायदे के लोभ में न आना ।
और भी बहुत सारे............................